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सपनों का घर अधूरा… पहाड़ों में दरकती उम्मीदें ,राष्ट्रपति के दत्तक पुत्र समुदाय का दर्द”

सरगुजा के अस्करा गांव का पहाड़ी कोरवा परिवार , पांच साल से ‘प्रधानमंत्री आवास योजना’ के अधूरे वादे के साए में जी रहा है, दरकती दीवारों के बीच हर दिन टंगी है जिंदगी की डोर,

The chalta/पहाड़ी कोरवा परिवार की दर्दभरी कहानी…

छत्तीसगढ़ के सरगुजा जिले का अस्करा गांव- चारों ओर पहाड़ों से घिरा, लेकिन इन पहाड़ों के बीच एक परिवार की उम्मीदें हर दिन ढहती जा रही हैं।राष्ट्रपति के दत्तक पुत्र समुदाय से आने वाले कुंवर साय कोरवा और उनकी पत्नी फूलमती कोरवा अपने सात बच्चों के साथ मिट्टी-पत्थर के खंडहरनुमा घर में जिंदगी गुजार रहे हैं। दीवारों में दरारें हैं, छत से मिट्टी झरती है, और किसी भी वक्त हादसे का डर साया बनकर मंडराता है।

कुंवर साय कहते हैं,

“हम पहाड़ी हैं, पर इंसान हैं। हमें भी चाहिए सरकार की सुविधा… मकान अधूरा है, पानी नहीं, सड़क नहीं। दलालों ने पैसा खा लिया, और हमें छोड़ दिया टूटी दीवारों के बीच।”

 अधूरा ‘आवास’ और अधूरा सपना

वर्ष 2019 में प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत कुंवर साय के नाम से राशि स्वीकृत हुई थी। परिवार को उम्मीद थी कि अब उनकी जिंदगी बदल जाएगी। लेकिन यह सपना भ्रष्टाचार की दीवार से टकरा गया।गांव के कुछ दलालों ने योजना की राशि में सेंध लगाई, और मकान का निर्माण बीच में ही रुक गया।आज वह अधूरा ढांचा, परिवार के टूटे सपनों की मूक गवाही देता है।

 अफसर बदले, सिस्टम नहीं

सरगुजा में कलेक्टर और एसपी कई बार बदले, पंचायत के चेहरे भी नए आए -पर असकरा गांव की तस्वीर वैसी की वैसी है।न सड़क है, न शुद्ध पानी। बच्चे कच्चे रास्तों से फिसलते हुए स्कूल पहुंचते हैं।पानी के लिए परिवार अब भी नाले पर निर्भर है।

कहां है विकास का वादा?

आजादी के 75 साल बाद भी अगर राष्ट्रपति के दत्तक पुत्र समुदाय को पक्के घर और साफ पानी जैसी मूलभूत सुविधाएं नहीं मिल सकीं,तो ये सवाल केवल प्रशासन पर नहीं, बल्कि पूरे सिस्टम की संवेदनशीलता पर है।सरकारी फाइलों में योजनाओं की सफलता के आंकड़े बढ़ रहे हैं,मगर असली लाभार्थी अब भी अपने ‘हक’ के इंतजार में हैं।

असकरा गांव की यह तस्वीर सिर्फ एक कोरवा परिवार की कहानी नहीं -यह उन सभी आवाज़ों की कहानी है जो पहाड़ों की खामोशी में दब गई हैं।जहां दीवारें दरकती हैं, पर उम्मीद अब भी जिंदा है -कि शायद किसी दिन, सिस्टम की नींद खुले… और कुंवर साय कोरवा का अधूरा सपना पूरा हो जाय 

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