सायकिल के पुर्जों से संजोया जीवन: जामकानी के नोहरसाय की संघर्षगाथा
पत्नी की बिमारी, अकेलापन और आर्थिक चुनौतियों को मात देकर सायकिल मिस्त्री नोहरसाय ने खड़ा किया अपने श्रम से आत्मनिर्भर परिवार

The chalta/जामकानी :ग्राम पंचायत जामकानी के गांधी चौक पर सायकिल रिपेयर करता एक शख्स—चेहरे पर जीवन के अनुभव की झुर्रियाँ और हाथों में मेहनत की चमक, ये हैं नोहरसाय, उम्र लगभग 62 वर्ष। पिछले 17 वर्षों से वे सायकिल रिपेयरिंग कर न केवल अपने परिवार का पालन-पोषण कर रहे हैं, बल्कि अपने जीवन की एक मिसाल भी बना चुके हैं।
नोहरसाय का जीवन संघर्षों से भरा रहा है। पत्नी की लंबी बीमारी और फिर उनका इस दुनिया से विदा हो जाना, उनके लिए किसी तूफान से कम नहीं था। लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। अपने बेटे को पाल-पोसकर योग्य बनाया, उसका विवाह किया और आज वे नाति-नतिनी वाले एक भरे पूरे परिवार के मुखिया हैं।
नोहरसाय बताते हैं, “पहले एक दिन में 17-20 सायकिल तक बना लेता था, अब उम्र हो गई है, रोज 4-5 नग बना लेता हूं। इससे रोज़ 200 से 300 रुपये तक आमदनी हो जाती है।”
यह आमदनी भले ही बड़ी न हो, लेकिन उनकी आत्मनिर्भरता और संतोष आज के समय में प्रेरणा है। अब तक लगभग 18000 से अधिक सायकिलों का रिपेयर कर चुके हैं।
गांधी चौक पर स्थित उनकी यह खुली चौक वाली दुकान अब न केवल उनकी रोजी-रोटी का साधन है, बल्कि ग्रामीणों के लिए भरोसे की जगह भी बन चुकी है। कई स्कूली बच्चे और ग्रामीण प्रतिदिन अपनी सायकिल लेकर नोहरसाय की गांधी चौक वाली दुकान पर पहुंचते हैं।
नोहरसाय का जीवन यह सिखाता है कि मेहनत और धैर्य से हर मुश्किल को पार किया जा सकता है। एक साधारण सायकिल मिस्त्री की यह असाधारण कहानी समाज को सादगी, मेहनत और आत्मबल की सीख देती है।