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परंपरा की धड़कन पर थिरका उरांव समाज: दशहरा कर्मा में गूंजे लोकगीत, झूमे कदम

कर्मा वृक्ष की पूजा और परंपरागत नृत्य से जीवंत हुआ आदिवासी सांस्कृतिक उत्सव

मैनपाट/डांगबुड़ा, 4 अक्टूबर — मैनपाट विकास खण्ड के डांगबुड़ा गाँव में उरांव आदिवासी समाज ने पारंपरिक हर्षोल्लास के साथ दशहरा कर्मा पर्व मनाया। पर्व के मौके पर गांव के अखड़ा में कर्मा वृक्ष की पूजा के साथ-साथ लोकनृत्य और गीतों का आयोजन किया गया। इस मौके पर युवाओं, विशेषकर महिलाओं ने रंग-बिरंगी पारंपरिक पोशाक में कर्मा नृत्य की प्रस्तुति दी, जिससे पूरा वातावरण लोक-संस्कृति से सराबोर हो गया।

कर्मा डाली की पूजा से हुई शुरुआत
करमडार लेकर आते

दशहरा कर्मा पर्व की शुरुआत कर्मा वृक्ष (कर्मा डाली) की स्थापना और पूजा के साथ हुई। युवाओं की टोली ने जंगल से लाकर कर्मा डाली को सम्मानपूर्वक गाँव के अखड़ा स्थल पर गाड़ा। इसके बाद बैगा द्वारा पूजा-अर्चना कर अच्छी फसल, वर्षा और सामाजिक समृद्धि की कामना की गई।

ऐसी है कर्मा नृत्य की शैली – सामूहिकता की अनूठी मिसाल

कर्मा नृत्य इस पर्व की सबसे विशेष पहचान है। इस नृत्य में:

  • लड़के और लड़कियाँ परंपरागत वस्त्रों में हाथों में हाथ डालकर घेरा बनाते हैं।
  • नृत्य की चालें धीमी गति से शुरू होती हैं और फिर वाद्य यंत्रों (मंदर, ढोल, नगाड़ा) की लय के साथ तीव्र हो जाती हैं।
  • एक पैर से दूसरे पैर पर संतुलित झुकते हुए, ताल में थिरकते हैं।
  • बीच-बीच में कर्मा गीतों की लय पर स्वर मिलाते हैं – गीतों में प्रकृति, प्रेम, संघर्ष और करम देवता की महिमा का वर्णन होता है।
  • पुरुषों और महिलाओं की समान भागीदारी इस नृत्य को सामूहिक एकता का प्रतीक बनाती है।

“हमारी संस्कृति हमारे गीतों और नृत्यों में बसती है। कर्मा नृत्य हमारे जीवन और प्रकृति के साथ रिश्ते को अभिव्यक्त करता है।” – विजयमती एक्का, पंच डांगबुड़ा

गीतों में गूंजा प्रकृति का सम्मान

नृत्य के दौरान गाए गए गीतों में करम और धरम की लोककथा, हरियाली की कामना, और समाज की एकता की भावना झलकी। बुजुर्गों ने बच्चों को करम कथा भी सुनाई, जिसमें करम देवता की पूजा और उसके आशीर्वाद से जुड़ी कहानियाँ शामिल थीं।

संस्कृति को संजोने की पहल

इस आयोजन में शामिल स्थानीय , सांस्कृतिक समूहों और पंचायत प्रतिनिधियों ने कहा कि ऐसे त्योहार आदिवासी अस्मिता और परंपरा के संरक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

“जब हम अपने नृत्य और गीतों के ज़रिए अपनी संस्कृति को जीते हैं, तब वह जीवंत रहती है। कर्मा पर्व सिर्फ पूजा नहीं, हमारी पहचान है।” – रंजिता, स्थानीय युवती ,डांगबुड़ा 

राजनीतिक सहभागिता भी रही आकर्षण का केंद्र

कार्यक्रम में स्थानीय विधायक रामकुमार टोप्पो भी बतौर मुख्य अतिथि शामिल हुए। वे पारंपरिक मांदर की थाप पर स्थानीय युवाओं युवतियों के साथ नाचे, लेकिन बिना किसी औपचारिक उद्बोधन के कार्यक्रम स्थल से निकल गए। उनकी सादगीपूर्ण उपस्थिति ने लोगों का ध्यान आकर्षित किया, लेकिन उनके मौन रवैये ने चर्चाओं को भी जन्म दिया।

संस्कृति, सामूहिकता और पहचान का उत्सव

दशहरा कर्मा पर्व केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि उरांव समाज की सांस्कृतिक धरोहर का जीवंत उत्सव है। यह पर्व एकता, प्रकृति प्रेम और परंपरा के साथ सामूहिक अभिव्यक्ति का अद्भुत उदाहरण प्रस्तुत करता है।

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