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आयुष्मान योजना : इलाज के नाम पर खुली लूट

गरीबों की आस, अस्पतालों का धंधा और सरकार की चुप्पी

 The chalta/प्रदेशभर के निजी अस्पतालों ने 1 अगस्त से आयुष्मान योजना के तहत इलाज बंद करने की घोषणा की है। वजह बताई जा रही है—सरकार से भुगतान में देरी। लेकिन असली सच यह है कि अस्पतालों को इलाज की नहीं, मुनाफे की चिंता है। आयुष्मान योजना गरीबों के लिए नहीं, बल्कि अस्पतालों के लिए लूट का सबसे बड़ा हथियार बन चुकी है।

अस्पतालों की मुनाफाखोरी

योजना के नाम पर निजी अस्पताल गरीब मरीजों का शोषण कर रहे हैं। मामूली बुखार को बड़ी बीमारी बना देना, फर्जी सर्जरी दिखाना, अनावश्यक जांच करना और हर दिन बिल का पहाड़ खड़ा करना—यह अब आम धंधा बन गया है। मरीज योजना का लाभ लेने आते हैं, लेकिन अस्पताल इसे नोट छापने की मशीन समझ चुके हैं।

अंबिकापुर का शर्मनाक उदाहरण

अंबिकापुर शहर के बनारस रोड स्थित एचआर अस्पताल, जो डॉ. गोयल के नाम से संचालित है, इसका जीता-जागता उदाहरण है। यहाँ इलाज से ज्यादा कारोबार हो रहा है। अस्पताल के एजेंट गांव-गांव घूमकर लोगों को लाते हैं, उनका आधार कार्ड और थंब इम्प्रेशन लेते हैं, फिर उन्हें बेड पर लिटाकर फोटो खींच लेते हैं। इसके बाद आयुष्मान कार्ड से फर्जी इलाज का क्लेम उठाकर मोटी रकम वसूली जाती है।

हद तो तब हो जाती है जब पूरी तरह स्वस्थ लोगों को भी बीमार बताकर अस्पताल के बेड पर लिटा दिया जाता है। एजेंट न सिर्फ लालच देकर मरीज फँसाते हैं, बल्कि विरोध करने वालों को धमकी भी देते हैं। यह पूरा रैकेट स्वास्थ्य विभाग की नाक के नीचे चल रहा है। सवाल है—क्या विभाग को कुछ पता ही नहीं, या फिर सब जानकर भी अनजान बने बैठे हैं?

सरकार की नाकामी और मिलीभगत

अगर अस्पतालों का भुगतान महीनों तक अटका रहता है तो यह सरकार की विफलता है। और जब अस्पताल खुलेआम लूट मचा रहे हों तो विभाग की खामोशी सीधी-सीधी मिलीभगत को दर्शाती है। आखिर गरीब मरीजों की जान की कीमत पर यह खेल कब तक चलता रहेगा?

गरीबों की टूटी उम्मीद

आयुष्मान योजना का सपना था कि गरीब बिना पैसों की चिंता के इलाज करा सके। लेकिन आज हालत यह है कि गरीब इलाज नहीं, बल्कि ठगी का शिकार बन रहे हैं। यह योजना “आश्रय” नहीं, बल्कि “आश्वासन” बनकर रह गई है।

जरूरत कड़े कदमों की

सरकार को अब दिखावटी बयानबाज़ी छोड़कर ठोस कार्रवाई करनी होगी।

  • फर्जीवाड़े में पकड़े गए अस्पतालों को योजना से बाहर किया जाए।
  • एजेंटों और अस्पताल प्रबंधन पर आपराधिक मामला दर्ज हो।
  • भुगतान व्यवस्था समयबद्ध और पारदर्शी बने।
  • सबसे अहम, गरीब मरीज को इलाज की वास्तविक गारंटी मिले।

अंतिम सवाल

स्वास्थ्य सेवा कोई कारोबार नहीं, यह इंसानियत की जिम्मेदारी है। लेकिन आज अस्पतालों ने इसे “दुकान” बना दिया है और सरकार मूकदर्शक बनकर तमाशा देख रही है। सवाल यह है—क्या गरीब का इलाज वाकई किसी की प्राथमिकता है या फिर यह भी सिर्फ चुनावी नारा बनकर रह जाएगा।

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