सीतापुर क्षेत्र में करंट लगने से 15 वर्षीय बालक की मौत: लापरवाही से गई एक और ज़िंदगी
यह सिर्फ एक बालक की मौत नहीं, बल्कि पूरे सिस्टम की जवाबदेही की परीक्षा है

सीतापुर, 13 अगस्त 2025 — जिले के बगढोली पंचायत भवन के पास बन रहे बहुउद्देशीय भवन निर्माण स्थल पर दर्दनाक हादसे में एक 15 वर्षीय बालक की मौत हो गई। मृतक नकुल सिंह, अपने रिश्तेदारों के साथ निर्माण स्थल पर मज़दूरी करने गया हुआ था। घटना दोपहर लगभग 12 बजे की बताई जा रही है, जब वह प्यास लगने पर पंचायत भवन की ओर पानी पीने गया।
पंचायत भवन की खिड़की में एक विधुत तार सटा हुआ था, जो निर्माण कार्य में उपयोग हो रहे पंप को बिजली आपूर्ति देने के लिए अस्थाई रूप से खींचा गया था। यह तार एक खंभे से हुक लगाकर सीधे पंचायत भवन की खिड़की के पास से खींचा गया था, जिसमें करंट प्रवाहित हो रहा था। जैसे ही नकुल खिड़की के पास गया, वह करंट की चपेट में आ गया।
डॉक्टरों ने मृत घोषित किया
मौके पर मौजूद लोगों ने आनन-फानन में नकुल को सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र, सीतापुर पहुंचाया, जहां डॉक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया। यह खबर इलाके में फैलते ही शोक की लहर दौड़ गई।
ठेकेदार की लापरवाही उजागर
स्थानीय लोगों का आरोप है कि यह करंट बिना किसी विधुत विभाग की अनुमति के असुरक्षित तरीके से खींचे गए तार के कारण हुआ। निर्माण कार्य में उपयोग के लिए खंभे से हुक लगाकर तार खींचा गया था, जो पंचायत भवन से होकर गुज़र रहा था। इसके लिए बिजली विभाग से कोई वैध परमिशन नहीं ली गई थी।
सीतापुर थाना प्रभारी ने बताया कि मामले में मर्ग जांच की जा रही है, और यदि जांच में ठेकेदार दोषी पाया जाता है तो उस पर उचित कानूनी कार्रवाई की जाएगी। वहीं, पुलिस ने बिजली विभाग से भी अनुमति के संबंध में लिखित जानकारी मांगी है।
श्रम कानून और बाल श्रमिकों की अनदेखी
यह भी गंभीर सवाल है कि एक नाबालिग बालक निर्माण स्थल पर कैसे काम कर रहा था। भारत में बाल श्रम कानूनों के तहत 18 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को खतरनाक कार्यों में लगाना गैरकानूनी है। मृतक नकुल के पिता की पहले ही मृत्यु हो चुकी थी, जिससे परिवार की आर्थिक स्थिति कमजोर बताई जा रही है। ऐसे में यह भी देखा जाना चाहिए कि श्रम विभाग इस मामले में क्या कार्रवाई करता है।
सर्व आदिवासी समाज की चुप्पी पर उठे सवाल
इस पूरे मामले में एक और सवाल जो ज़ोर पकड़ रहा है, वह यह है कि सर्व आदिवासी समाज, जो कि आदिवासी अधिकारों और अन्याय के खिलाफ आवाज़ उठाने के लिए जाना जाता है, इस बार चुप क्यों है? आमतौर पर किसी राजनीतिक या प्रशासनिक विवाद पर आंदोलन करने वाला संगठन, इस दर्दनाक घटना पर अब तक मौन क्यों है?
स्थानीय लोगों और सामाजिक कार्यकर्ताओं का कहना है कि यह चुप्पी केवल इसलिए है क्योंकि यह मामला किसी विधायक या राजनीतिक हस्ती से जुड़ा नहीं है। लोगों का सवाल है कि क्या आदिवासी समाज की पीड़ा केवल तब ही मायने रखती है जब उसमें राजनीतिक रंग हो।
इस दुर्भाग्यपूर्ण घटना ने एक बार फिर निर्माण स्थलों पर सुरक्षा के प्रति बरती जा रही लापरवाही, बाल श्रम, और प्रशासनिक उदासीनता की पोल खोल दी है। अब यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि:
- क्या ठेकेदार पर उचित कार्यवाही होती है?
- क्या बिजली विभाग बिना अनुमति के विद्युत आपूर्ति के लिए जिम्मेदारों को चिन्हित करेगा?
- क्या श्रम विभाग इस बाल श्रमिक की मौत पर कोई ठोस कदम उठाएगा?
- और क्या सर्व आदिवासी समाज ऐसे मामलों में भी समान संवेदनशीलता दिखाएगा?
यह सिर्फ एक बालक की मौत नहीं, बल्कि पूरे सिस्टम की जवाबदेही की परीक्षा है।