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जंगल के नक्सली नहीं! कंक्रीट के जंगल बनाने वालों की गिरफ्त के चक्रव्यूह में, सिस्टम की भेंट चढ़ गए! बस्तर, बीजापुर के पत्रकार साथी मुकेश दादा:तेज

यूं नहीं होता आसान पत्रकारिता करना,डियर भूरू! नमन

डियर भूरू! नमन
जंगल के नक्सली नहीं! कंक्रीट के जंगल बनाने वालों की गिरफ्त के चक्रव्यूह में, सिस्टम की भेंट चढ़ गए! बस्तर, बीजापुर के पत्रकार साथी मुकेश दादा।

यूं नहीं होता आसान पत्रकारिता करना! एक पोस्ट देखी कि भाई लापता है। करीबी को कॉल किया, बात नहीं हो पाई। एक इंटरव्यू शूट में व्यस्त था। पूरा होने पर मोबाइल देखा तो जो देखा, उस पर यकीन नहीं हुआ। स्तब्ध रह गया!

पहले पोस्ट देखने के बाद ख्याल आया था कि जिस क्षेत्र से आते हैं, जंगल में कहीं होंगे।जंगल के नक्सली तो ठीक, लेकिन कंक्रीट के जंगल बनाने वालों की गिरफ्त के चक्रव्यूह में, सिस्टम की भेंट चढ़ गए!

बड़े होकर भी, छोटे-बड़ों का समान रूप से सम्मान करना उनके व्यवहार का हिस्सा था। प्यारे से वे सबको ‘दादा’ कहते थे। 2015 से सक्रिय रूप से पत्रकारिता में हूं। युवा और वरिष्ठों का स्नेह सदैव मिलता रहा है। प्यार से ‘दादा’ कहते और मेरे कामों, मेरी स्टोरी को प्रोत्साहित करते रहे।

एक बार अपने ऑफिस में मिले थे। एक बेहतरीन साथी का ऐसे जाना सबके लिए सवाल खड़ा करता है। जिस विधा में हम हैं, उसमें सबकी जिम्मेदारी हमारे हिस्से आती है। सुरक्षा के नाम पर इन दिनों पत्रकारों पर काफी सवाल उठते रहते हैं।

देखिए, ऐसे पत्रकार हैं जिनकी शहादत पर सामान्य लोगों को कितना जुड़ाव महसूस होगा, यह पता नहीं। लेकिन यह “निर्मम हत्या” तमाम घटनाओं से ऊपर है और इसकी निष्पक्ष जांच होनी चाहिए। तत्काल प्रभाव से साजिश रचने वालों को मौत की सजा दी जानी चाहिए…

एक बार मैंने दो स्टोरी लिखी थीं। जब चयन की बात आई तो डियर भूरू पर मुकेश भैया ने कहा था,
“दादा, डियर भूरू शेयर कीजिए। लोग मुझे ऐसे कहते हैं, तो हमारे लिए यह अच्छा होगा।”बीजापुर से ग्राउंड रिपोर्टिंग करने वाले, सॉफ्ट स्पोकन आवाज़ को सुनना हम सब याद करेंगे। तेज़ साहू

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