मैनपाट में मधुमक्खी पालन विषय पर सात दिवसीय प्रशिक्षण सह भ्रमण कार्यक्रम का भव्य शुभारंभ
राजमोहनी देवी कृषि महाविद्यालय एवं कृषि विज्ञान केंद्र, मैनपाट के संयुक्त तत्वावधान में हुआ आयोजन, 25 चयनित कृषकों को मिलेगा प्रशिक्षण

The chalta/मैनपाट,इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय अंतर्गत कृषि विज्ञान केंद्र, मैनपाट में नेशनल बी कीपिंग एंड हनी मिशन के अंतर्गत सात दिवसीय मधुमक्खी पालन विषयक प्रशिक्षण सह भ्रमण कार्यक्रम का शुभारंभ किया गया। इस कार्यक्रम का उद्घाटन राजमोहनी देवी कृषि महाविद्यालय के अधिष्ठाता डॉ. संतोष कुमार सिन्हा ने मुख्य अतिथि के रूप में किया। कार्यक्रम में AICRP मधुमक्खी योजना समन्वयक डॉ. प्रदीप भगत, एवं कृषि विभाग सीतापुर की अनुविभागीय कृषि अधिकारी श्रीमती अनीता इक्का विशिष्ट अतिथि के रूप में उपस्थित रहीं।
संस्था प्रमुख डॉ. राजेश चौकसे ने स्वागत भाषण में कहा कि मधुमक्खी न केवल फसलों की परागण में सहायक होती हैं बल्कि पर्यावरण संतुलन और जैव विविधता बढ़ाने में भी इनकी महत्वपूर्ण भूमिका होती है। उन्होंने बताया कि इस प्रशिक्षण में क्षेत्र के 25 चयनित कृषकों को मधुमक्खी पालन की आधुनिक तकनीकों का व्यावहारिक ज्ञान दिया जाएगा।
डॉ. संतोष कुमार सिन्हा ने मधुमक्खी पालन के लिए उपयोगी फसलों, फूलों तथा इटालियन प्रजाति की मधुमक्खियों की विशेषताओं के बारे में विस्तार से जानकारी दी। उन्होंने बताया कि मधुमक्खी पालन से फसल उत्पादन में 10 से 15 प्रतिशत तक वृद्धि संभव है। यह केवल व्यवसाय नहीं, बल्कि प्रकृति और कृषि के बीच एक अद्भुत सहयोग का प्रतीक है।
आलू अनुसंधान केंद्र प्रमुख डॉ. प्रदीप भगत ने मधुमक्खी पकड़ने एवं उन्हें बॉक्स में सुरक्षित रखने की तकनीकों के बारे में व्यावहारिक जानकारी दी। उन्होंने किसानों को मधुमक्खी पालन को आयवर्धन के माध्यम के रूप में अपनाने के लिए प्रेरित किया और कहा कि नेशनल हनी मिशन के अंतर्गत अधिक से अधिक किसानों को इस योजना से जोड़ा जाना चाहिए।
कीट वैज्ञानिक डॉ. सचिन जायसवाल ने मधुमक्खी के जीवन चक्र एवं स्वभाव, जबकि डॉ. वीरेंद्र चौहान ने मधु बॉक्स के रखरखाव एवं उपचार संबंधी तकनीकी जानकारी साझा की। उन्होंने बताया कि मधुमक्खी पालन समन्वित कृषि प्रणाली का अभिन्न हिस्सा बन सकता है, जिससे सब्जी और उद्यानिकी फसलों की पैदावार बढ़ती है।
कार्यक्रम का संचालन डॉ. शमशेर आलम द्वारा किया गया। इस अवसर पर प्रदीप कुमार लकड़ा, केंद्र के समस्त वैज्ञानिक, कर्मचारी एवं बड़ी संख्या में कृषक उपस्थित रहे।