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एक ‘पागल’ की सुध… और सिस्टम की चुप्पी!

NH-43 की जानलेवा गड्ढों से परेशान राहगीरों के लिए मानसिक रूप से अस्वस्थ युवक बना मसीहा – जिम्मेदार अब भी बेखबर

The chalta/सीतापुर /छत्तीसगढ़/जहां सरकार और जनप्रतिनिधि गड्ढों की तरह खामोशी में धंसे बैठे हैं, वहीं प्रतापगढ़ का एक मानसिक रूप से अस्वस्थ युवक समाज को आईना दिखा रहा है। NH-43 पर सोनतराई चौक के पास जानलेवा गड्ढों से हर दिन गुजरने वाले राहगीरों की तकलीफ इस युवक से देखी न गई – और उसने अपने स्तर पर इन गड्ढों को भरने का बीड़ा उठा लिया।

रोजाना अपनी क्षमता अनुसार मिट्टी और पत्थर जुटाकर वह इन गड्ढों को समतल करने का कार्य कर रहा है। यह दृश्य न केवल उसके भीतर की मानवता और संवेदनशीलता को उजागर करता है, बल्कि शासन-प्रशासन की निष्क्रियता पर करारा तमाचा भी है।

सड़क नहीं, जोखिम की राह है NH-43

सोनतराई से सीतापुर होते हुए सूर तक NH-43 सड़क कई जगहों पर पूरी तरह गड्ढों में तब्दील हो चुकी है। यह मार्ग अब वाहन चालकों और पैदल यात्रियों के लिए खतरे की घंटी बन गया है। इसके बावजूद सड़क मरम्मत के जिम्मेदार अधिकारी और जनप्रतिनिधि आंख मूंदे बैठे हैं।

बाईपास निर्माण – मुआवजा मिला, सड़क नहीं!

सीतापुर नगरवासी वर्षों से NH-43 के वैकल्पिक बाईपास की मांग कर रहे हैं। कुछ वर्ष पूर्व इसके निर्माण के लिए जमीन अधिग्रहण हुआ, मुआवजा भी बांटा गया। पर निर्माण कार्य आज तक अधर में लटका है। अब हालात यह हैं कि मुआवजा पा चुके जमीन मालिक कई फसलें उगा चुके हैं, लेकिन सड़क निर्माण की फाइल फिर से ठंडे बस्ते में जा चुकी है।

NH 43 सीतापुर

जनता का सवाल – क्या अब संवेदना भी ‘पागलपन’ बन गई है?

नगरवासी अब सवाल पूछ रहे हैं —जब एक मानसिक रूप से अस्वस्थ युवक जनता की पीड़ा समझ सड़क सुधार में जुट सकता है, तो क्या सरकारी तंत्र इतना असंवेदनशील हो चुका है कि उसे जनता की तकलीफें भी नहीं दिखतीं?

यह वाकया एक उदाहरण नहीं, बल्कि सिस्टम पर सवालिया निशान है। अब देखना यह है कि क्या प्रशासन इस तस्वीर से कुछ सबक लेगा या फिर एक और आम नागरिक को अकेले ही व्यवस्था की नाकामी को ढोते देखना पड़ेगा।

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