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देशी जुगाड़ बना ग्रामीणों का सहारा: मछली नदी पर अब तक नहीं बना स्थायी पुल

छत्तीसगढ़ के सरगुजा जिले के सुपलगा गांव में आजादी के 79 साल बाद भी मूलभूत सुविधा का इंतजार, बारिश के बाद जुगाड़ से बनता है लकड़ी का पुल

The chalta/छत्तीसगढ़ के सरगुजा जिले के सुपलगा गांव के ग्रामीण आज भी बुनियादी सुविधा—एक पक्के पुल—के लिए तरस रहे हैं। अंबिकापुर से महज 55 किलोमीटर की दूरी पर स्थित यह गांव आज भी विकास से कोसों दूर है। बरसात के मौसम में मछली नदी उफान पर आ जाती है, जिससे ग्रामीणों का संपर्क आसपास के गांवों और ब्लॉक मुख्यालय से पूरी तरह कट जाता है।

हर साल ‘जुगाड़’ से बनता है देशी पुल, वही बना ग्रामीणों की उम्मीद

बरसात खत्म होते ही गांव के लोग मिलकर लकड़ियों, बल्ली और टहनियों से एक अस्थायी देशी पुल बनाते हैं। यह जुगाड़ तकनीक वर्षों से ग्रामीणों की मजबूरी बन गई है। यह लकड़ी का पुल इतना मजबूत बनाया जाता है कि उस पर से न सिर्फ लोग, बल्कि बाइक जैसी दोपहिया वाहन भी पार हो जाती हैं।

ग्रामीणों का कहना है, “जब तक सरकार की तरफ से कोई मदद नहीं मिलती, तब तक यही जुगाड़ ही हमारी जिंदगी का रास्ता है।”

बारिश में हालात बदतर, इलाज और पढ़ाई दोनों पर असर

बरसात के दौरान जब मछली नदी उफान पर होती है, तब गांव पूरी तरह अलग-थलग पड़ जाता है।

किसी के बीमार होने पर 15 किलोमीटर घूमकर अस्पताल ले जाना पड़ता है।

स्कूली बच्चे पानी के कारण स्कूल नहीं जा पाते।

गांव में हाई स्कूल न होने के कारण बच्चों को दूर के गांवों में जाना पड़ता है।

कई बार लोग नदी पार करते समय बह चुके हैं, जिससे जान का खतरा बना रहता है।

जिम्मेदार मौन, ग्रामीण लाचार

ग्रामीणों ने कई बार जनप्रतिनिधियों और प्रशासन से मछली नदी पर पक्के पुल के निर्माण की मांग की है, लेकिन आज तक सिर्फ आश्वासन ही मिले हैं।

एक स्थानीय बुजुर्ग कहते हैं, “हर चुनाव में नेता वादा करते हैं, लेकिन चुनाव जीतने के बाद कोई लौटकर नहीं आता।”

सरकार से उम्मीद: कब मिलेगा हक का पुल?

सुपलगा गांव की यह कहानी सिर्फ एक गांव की नहीं, बल्कि देश के उन सैकड़ों गांवों की है जहां आज भी विकास के नाम पर सिर्फ वादे और जुमले दिए गए हैं। अब सवाल यह है कि क्या मछली नदी पर कभी पक्का पुल बनेगा, या ग्रामीणों को इसी देशी जुगाड़ पर अपनी ज़िंदगी काटनी पड़ेगी?

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