आदिकाल जैसा गुरुकुल, मगर सरकारी: जंगलों के बीच संघर्ष करता सरगुजा का कतकालो कोरवापारा स्कूल”
जर्जर भवन, पेड़ के नीचे भोजन, बिना पानी-बिजली और छत टपकती बारिश में भी शिक्षा देने डटे हैं शिक्षक — राष्ट्रपति के दत्तक पुत्र पहाड़ी कोरवा बच्चों की शिक्षा के लिए जंग

ग्राउंड रिपोर्ट/ The chalta / सरगुजा, छत्तीसगढ़ से
छत्तीसगढ़ के सरगुजा जिले के घने जंगलों के बीच बसा कतकालो गांव, जहां मौजूद है एक ऐसा सरकारी स्कूल जो आज भी आदिकाल के गुरुकुल जैसा दिखता है — फर्क बस इतना है कि यहां न तो बांस की झोपड़ी है, न ही मिट्टी का चूल्हा, बल्कि है एक जर्जर भवन, जहां शिक्षक और बच्चे दोनों जद्दोजहद कर रहे हैं।
यहां पढ़ाई करने वाले बच्चे कोई आम बच्चे नहीं, बल्कि राष्ट्रपति द्वारा दत्तक लिए गए जनजातीय समुदाय पहाड़ी कोरवा से हैं। लेकिन जिस तरह से यहां शिक्षा की हालत है, उसे देखकर लगता है कि ये बच्चे और उनके शिक्षक सरकारी तंत्र की उदासीनता के सबसे बड़े शिकार हैं।

खंडहर में चलता है स्कूल, पेड़ के नीचे होती है मिड-डे मील
कतकालो का सरकारी प्राथमिक विद्यालय आज खंडहर में तब्दील हो चुका है। दीवारें टूटी हैं, छत से पानी टपकता है और बारिश में पूरी बिल्डिंग तालाब जैसी हो जाती है। पानी, किचन और शौचालय जैसी मूलभूत सुविधाएं नदारद हैं। शिक्षक बच्चों के लिए खाना खुद बनाकर लाते हैं और उसे पेड़ के नीचे बैठाकर खिलाते हैं। ये तस्वीरें किसी फिल्म की नहीं, बल्कि हमारे समय की सच्चाई हैं।
शिक्षकों का जज़्बा: “हर दिन एक नई चुनौती है”
यहां पढ़ाने वाले शिक्षक कहते हैं कि बच्चों को स्कूल तक लाना ही एक संघर्ष है। एक शिक्षक ने बताया,
“पहले तो हमें खुद बच्चों के घर जाकर उन्हें लाना पड़ता था। अब हालात थोड़े बदले हैं, बच्चे खुद आने लगे हैं, चाहे बारिश हो या धूप।”
तीन महीने से स्कूल में पढ़ा रहे एक अन्य शिक्षक कहते हैं –
“गिनती और वर्णमाला सिखाने में ही महीनों लग जाते हैं। ये बच्चे पहली बार किसी स्कूल से जुड़ रहे हैं, तो सीखने में समय तो लगेगा। पर हम रुके नहीं हैं, और न ही रुकेंगे।”
बेसिक सुविधाओं का अभाव, लेकिन हौसला बरकरार
यह स्कूल उन सभी सरकारी योजनाओं को आईना दिखाता है, जो कागज़ पर तो दिखती हैं, लेकिन ज़मीन पर नहीं। भवन निर्माण, मिड-डे मील किचन, पीने का पानी, बिजली, शौचालय जैसी ज़रूरी चीज़ें यहां सिर्फ़ एक सपना हैं।
बावजूद इसके, शिक्षक कहते हैं –
“हम इसे नौकरी नहीं, सेवा मानते हैं। हमारे लिए ये एक तपस्या है।”
सरकार से अपील: इन बच्चों को भी चाहिए समान अवसर
कतकालो का ये सरकारी स्कूल बताता है कि भारत में शिक्षा की जमीनी सच्चाई क्या है, खासकर आदिवासी और दूरस्थ इलाकों में। ये सिर्फ एक स्कूल नहीं, हमारी नीतियों की परीक्षा की जगह है, जहां सबसे ज़्यादा ज़रूरत है ध्यान देने की। अगर हम चाहते हैं कि राष्ट्रपति के दत्तक पुत्र कहे जाने वाले पहाड़ी कोरवा बच्चे भी मुख्यधारा में आएं, तो सबसे पहले शिक्षा के इन मंदिरों को खंडहर से निकालकर सशक्त बनाना होगा। शिक्षक अकेले ये लड़ाई नहीं लड़ सकते — अब ज़िम्मेदारी सरकार और समाज की है।