मासूम की दर्द: समाज की आत्मा को झकझोरती घटना
नेत्रहीन नाबालिग के साथ दरिंदगी—क्या अब भी हम चुप रहेंगे?

The chalta संपादकीय
27/08/2025:सीतापुर में हुई घटना ने इंसानियत को शर्मसार कर दिया है। एक नेत्रहीन नाबालिग बच्ची, जो पहले ही जीवन की कठिनाइयों से जूझ रही थी, अपने ही दो ममेरे भाइयों की हवस का शिकार बनी। महीनों तक चलता रहा यह अत्याचार तब उजागर हुआ जब बच्ची गर्भवती हो गई।
पीड़ा को दबाने की कोशिश
बताया जा रहा है कि बच्ची के पेट में तकलीफ़ होने पर पहले झाड़-फूंक करवाई गई। जब पेट में उभार दिखने लगा, तब जाकर परिवार को सच्चाई का अंदेशा हुआ और मामला स्पष्ट हुआ। यह सोचने वाली बात है कि हमारी सामाजिक मान्यताएँ और अंधविश्वास किस तरह एक पीड़िता के दर्द को और गहरा कर देते हैं।
कानून की ओर पहला कदम
पीड़िता के परिवार की शिकायत पर पुलिस ने FIR दर्ज कर ली है। लेकिन आरोपी पिछले तीन माह से गांव से फरार बताए जा रहे हैं। जांच जारी है और पुलिस की ज़िम्मेदारी है कि उन्हें जल्द से जल्द गिरफ्तार कर न्याय के कठघरे में खड़ा करे। यदि अपराधी खुले घूमते हैं, तो यह समाज की सुरक्षा के लिए गंभीर खतरा है।
असहाय पर वार—सबसे बड़ा अपराध
सोचिए, जो बच्ची दूसरों की मदद पर निर्भर है, वही अपने रिश्तेदारों की दरिंदगी का शिकार बने—क्या इससे बड़ी अमानवीयता हो सकती है? उसकी चुप्पी, उसका दर्द और उसका भरोसा तोड़ देने वाला यह अपराध हमें बताता है कि समाज अपनी जिम्मेदारी भूल चुका है।
चुप्पी ही अपराध की ताकत
अक्सर लोग “बदनामी” और “डर” के कारण शिकायत दर्ज कराने से बचते हैं। यही चुप्पी अपराधियों का सहारा बन जाती है। समाज को समझना होगा कि चुप रहना भी अपराध को बढ़ावा देना है।
मानवता की परीक्षा का समय
यह मामला सिर्फ़ कानून का नहीं, बल्कि हमारी मानवता की परीक्षा है। बच्चों—विशेषकर दिव्यांग और असहाय—को सुरक्षित माहौल देना समाज की प्राथमिक जिम्मेदारी है। प्रशासन को त्वरित कार्रवाई करनी होगी और समाज को संवेदनशील बनना होगा।
यह घटना हमें चेतावनी देती है:
“जब तक हर बच्चा सुरक्षित नहीं, तब तक हम सब असुरक्षित हैं।”
अब समय है कि समाज जागे, जिम्मेदारी निभाए और दरिंदों के खिलाफ खड़ा हो। अपराधियों को जल्द पकड़कर सख़्त सज़ा दी जाए, ताकि कोई और मासूम इस पीड़ा से न गुज़रे।