चुनाव खरीद-फरोख्त:उप सरपंच बनने की चाह में एक पंच ने दुसरे वार्ड के पंचों को कथित तौर पर बांटा प्लेटिना, मामला कोर्ट में…
जिस लोकतंत्र की नींव गांवों में रखी जाती है, वहां यदि वोट की कीमत एक मोटरसाइकिल हो जाए और न्याय भी ठहर जाए, तो यह पूरे शासन तंत्र के लिए एक खतरनाक संकेत है....

The chalta/ 10 मार्च 2025 को हुए उप सरपंच चुनाव में वोट खरीदने का सुनियोजित षड्यंत्र सामने आया है। जनपद पंचायत बरमकेला अंतर्गत ग्राम पंचायत मारोदरहा में उप सरपंच पद को लेकर एक बड़ा विवाद खड़ा हो गया है। जानकारी के अनुसार, उप सरपंच बनने की चाह में एक पंच ने कथित रूप से दूसरे वार्ड के पंचों को प्लेटीना मोटरसाइकिल देकर अपने पक्ष में वोट डलवाए और उप सरपंच का पद हासिल कर लिया।
जानिए क्या पूरा मामला….
10 मार्च 2025 को हुए उप सरपंच चुनाव में वोट खरीदने का सुनियोजित षड्यंत्र सामने आया है। आरोप है कि दिनेश डनसेना ने उप सरपंच पद पाने के लिए एक नहीं, बल्कि पूरे 9 निर्वाचित पंचों को ‘प्लेटिना मोटरसाइकिल’ का लालच देकर खरीदा, और मनचाहा परिणाम हासिल कर लिया। आरोप है कि कथित खरीद-फरोख्त में शामिल पंचों को मतदान तिथि से पूर्व ही अरूण ऑटो, चंद्रपुर, जिला सक्ती (छ.ग.) से 100 सीसी की प्लेटिना मोटरसाइकिलें दी गईं। जिन पंचों के नाम इस सौदेबाजी में सामने आए, वे हैं: हुलसी बाई (पति बलभद्र पटेल, वार्ड 11), शकुंतला पटेल (पति अशोक पटेल, वार्ड 12), गंधरवी चौहान (पति श्यामलाल चौहान, वार्ड 15), तेजराम उनसेना (वार्ड 1), शक्राजीत साहू (वार्ड 2), मोंगरा साहू (पति संतोष साहू, वार्ड 4), संजय सिदार (वार्ड 7), सुनीता सिदार (पति उत्तम सिदार ,वार्ड 8)।
पंचायत माफिया के इस भ्रष्ट आचरण के विरुद्ध विरोधी पक्ष ने न्यायालय की शरण ली है, लेकिन न्याय प्रक्रिया की गंभीर लापरवाही से मामला वहीं अटका रह गया है। तय तिथि पर सुनवाई नहीं हो सकी क्योंकि एसडीएम कोर्ट बरमकेला से संबंधित फाइल न्यायालय समय पर नहीं पहुंची। शिकायतकर्ताओं ने आरोप लगाया है कि यह देरी सुनियोजित है, जिससे आरोपी को समय और राहत मिले। सूत्रों ने बताया कि इस पूरे प्रकरण में कुछ पंचों की कथित ऑडियो रिकॉर्डिंग भी सामने आई है, जिनमें सौदेबाजी के संकेत माने जा रहे हैं। यदि इनकी पुष्टि होती है, तो यह मामला चुनावी अनियमितता और ग्राम पंचायत स्तर पर गहराए भ्रष्टाचार की एक शर्मनाक मिसाल बन जाएगा। सूत्रों के अनुसार शिकायत कर्ता ने अपने साक्ष्य और गवाहों की सूची तैयार कर ली है। अब सभी की निगाहें अगली सुनवाई की तारीख पर टिकी हैं, जो बार-बार टलती जा रही है।
बहरहाल यह मामला न केवल एक ग्राम पंचायत की साख को धूमिल करता है, बल्कि समूची पंचायती राज व्यवस्था पर भी सवाल खड़े करता है। जिस लोकतंत्र की नींव गांवों में रखी जाती है, वहां यदि वोट की कीमत एक मोटरसाइकिल हो जाए और न्याय भी ठहर जाए, तो यह पूरे शासन तंत्र के लिए एक खतरनाक संकेत है।