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राजस्व पटवारी संघ छत्तीसगढ़ के “मन की बात” एक बार जरूर पढ़ें

संसाधन नहीं, तो कार्य नहीं. शोषण नहीं, समाधान चाहिए.

BoycottOnlineWork राजस्व पटवारी संघ छत्तीसगढ़ के मन की बात:- आज “डिजिटल इंडिया” का नारा एक मजाक बन चुका है। एक ओर सरकार और विभाग हमें ऑनलाइन कार्यों का पहाड़ सौंप रहा है—ऑनलाइन नामांतरण, ऑनलाइन गिरदावरी, ऑनलाइन नक्शा बंटवारा, हर चीज आज ऑनलाइन है और दूसरी ओर इसके लिए विभाग की तरफ से न तो कोई संसाधन उपलब्ध कराए गए हैं, न ही कोई वित्तीय सहायता प्राप्त हो रही है।

पटवारियों का कहना है जब तक सरकार हमारे कार्यालयों में कंप्यूटर, प्रिंटर, स्कैनर, इंटरनेट, फर्नीचर जैसी बुनियादी सुविधाएँ उपलब्ध नहीं कराती और इनके संचालन के लिए आवश्यक भत्ता प्रदान नहीं करती, तब तक किसी भी प्रकार का ऑनलाइन कार्य नहीं करना और इस पर डटे रहना आवश्यक है।

सरकार को यह याद रखना होगा—सपने दिखाने से काम नहीं चलता, उन्हें साकार करने के लिए ठोस कदम उठाने पड़ते हैं। आज हमें बिना संसाधनों के काम करने पर मजबूर किया जा रहा है। अपनी नाकामियों को छिपाने के लिए हम पर बेवजह दबाव बनाया जा रहा है. और इस अन्याय पर जब हम सवाल उठाते हैं, तो जवाब मिलता है—”व्हाट्सएप और मोबाइल से काम कर लो।” ऑनलाइन कार्य के नाम पर समय बेसमय चाहे दिन हो या रात कभी भीं कोई भी आदेश करके उसको करने का दबाव बनाया जाता है , क्या हमारा कोई सामाजिक जीवन नहीं है ? अब हमको उन्हें यह स्पष्ट कर देना चाहिए

1. हमारा मोबाइल और व्हाट्सएप हमारी व्यक्तिगत चीजें हैं। इसे हमने अपने और अपने घर परिवार की सुविधा के लिए लिया है और इसे विभागीय कार्यों के लिए उपयोग करने का दबाव अस्वीकार्य है।

2. कार्यालयीन अवधि के अलावा किसी भी समय जो कार्य लिए जा रहे हैं मानसिक रूप से प्रताड़ित किया जा रहा है ये बर्दाश्त के बाहर है. हमारा भी एक सामाजिक जीवन है ऑनलाइन कार्य के नाम पर इसको इन्होंने कुचलकर रख दिया है और खुद मजे से छुट्टियां मनाते घूमते हैं. ये अस्वीकार्य है.

3. जब सरकार संसाधन उपलब्ध कराने में असमर्थ है, तो उसे हमारे व्यक्तिगत साधनों पर निर्भर होने का कोई अधिकार नहीं। संसाधन देते नहीं और नोटिस पे नोटिस देते हैं कि फलाना फलाना कार्य क्यों नहीं हुआ ?

4. यदि ऑनलाइन कार्य अनिवार्य है, तो विभाग ऑपरेटर नियुक्त करे। हम मैन्युअल कार्य करके देने के लिए तैयार हैं, लेकिन ऑनलाइन कार्य हमारी जिम्मेदारी नहीं होगी। इसकी समस्त जिम्मेदारी विभाग की हो.

ये एक मजाक से ज्यादा कुछ नहीं है कि एक ओर सरकार “डिजिटल इंडिया” की सफलता के लिए अवॉर्ड लेती है, लेकिन वह यह नहीं बताती कि यह सफलता हमारे खून-पसीने की कमाई और व्यक्तिगत साधनों के बल पर हासिल की गई है। उल्टा सार्वजनिक रूप से हमें विलेन की तरह जनता के सामने रख देती है , ये तो बेशर्मी है उनकी. यह हमारी मेहनत का शोषण है, ये मानसिक रूप से प्रताड़ना से ज्यादा कुछ नहीं. ये अपनी राजनीति के लिए सरकारी कर्मचारियों के नाम का इस्तेमाल करते हैं और अब यह बर्दाश्त से बाहर हो चुका है। इन सबका विरोध आवश्यक है वरना पूरा जीवन इसमें गुजर जाएगा।

 इसके साथ ही ये व्यवस्था करे:-

1. आवश्यक संसाधन: कार्यालय में कंप्यूटर, प्रिंटर, इंटरनेट, और अन्य उपकरणों की तत्काल व्यवस्था।

2. नेट भत्ता: कर्मचारियों को इंटरनेट, डेटा उपयोग और संसाधनों के रखरखाव के लिए समुचित वित्तीय सहायता।

3.संसाधन नहीं दे सकते तो ऑपरेटर नियुक्ति करे और अपना कार्य करवाए और अवॉर्ड ले. हमको ऑनलाइन कार्य से कोई मतलब नहीं.

जब तक हमारी इन मांगों को पूरा नहीं किया जाता, हमारा आंदोलन जारी रहेगा।

सरकार से पटवारियों का कुछ सवाल है:-

क्या “डिजिटल इंडिया” का मतलब कर्मचारियों का शोषण है?

क्या सरकारी जिम्मेदारियाँ अब कर्मचारियों के व्यक्तिगत साधनों पर टाल दी जाएंगी?

कब तक विभाग और सरकार अपनी असफलताओं को कर्मचारियों का आड़ लेकर छुपाने की कोशिश करता रहेगा?

कब तक हमारे सीमित वेतन और व्यक्तिगत साधनो पर विभाग अपनी जिम्मेदारी टालता रहेगा ?

अब बहुत हुआ। यह लड़ाई सिर्फ संसाधनों की नहीं, सम्मान और अधिकारों की भी है। और ये हर उस कर्मचारी की आवाज है जिसे संसाधन के अभाव में कार्य करने के लिए प्रताड़ित किया जा रहा है.

डिजिटल इंडिया का सपना सिर्फ नारों से नहीं, कर्मचारियों के लिए साधन और उनके सम्मान से पूरा होगा।

जब तक हमारी मांगे पूरी नहीं होती हम ऑनलाइन कार्यों का पूर्ण रूप से बहिष्कार करते हैं.

*संसाधन नहीं, तो कार्य नहीं।*
*शोषण नहीं, समाधान चाहिए।*
इस न्याय के बिना अब ये आंदोलन खत्म नहीं होगा। राजस्व पटवारी संघ छत्तीसगढ़

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