सुबह की हवा लाख रुपये की दवा,दवा तो पता नही मिली कि नहीं पर फ्री का धूल जरूर मिल गया
लेखक एक शिक्षक हैं। समाज को समय समय पर जागरूक करने के लिए स्वतंत्र लेखन करते रहते हैं। उनके फेसबुक को साभार।।
सीतापुर:किसी विद्वान ने कहा था कि “सुबह की हवा लाख रुपये की दवा” जैसे ही ये बात हमारे नयनों के पड़ोसी दोनो कानो ने सुनी स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता फैलाने वाले उस सज्जन पुरूष की बात मानकर हम भी निकल पड़े लाखों की दवा फ्री में लेने की चाह में । दवा तो पता नही मिली कि नहीं पर फ्री का धूल जरूर मिल गया ।
सरगुजा की शांत वातावरण में बसा है सीतापुर जिसके चारों ओर हरियाली है । यहाँ की हवा को प्रदूषित करने के लिए चिमनी से जहर निकालता न तो कोई कारखाना है न ही यहाँ की साफ स्वच्छ नदियों में जहर घोलने के लिए कोई रासायनिक फैक्ट्ररी । ओवरऑल यदि कहें की ये नगर स्वास्थ्य की दृष्टि से स्वर्ग से कम नहीं । पर कुछ वर्षों से इस स्वर्ग को न जाने किसकी नजर लग गई । एक भयानक खतरनाक दैत्य ने इस शहर को चारों ओर से घेर लिया । उस दैत्य का नाम है धूल । जिस तरह से हिंदी फिल्मों में पुलिस चोंगा लगाकर गुंडों को चेतावनी देती है न कि “सावधान पुलिस ने तुम्हें चारों ओर से घेर लिया है भागने की कोशिश बेकार है” बस उसी तरह से इस धूल ने भी हमें चारों ओर से धेरा हुआ है, क्या दिन – क्या रात , क्या घर – क्या बाहर ।
सीता मईया की गोद कहे जाने वाले सीतापुर को अब लोग धूलपुर की संज्ञा दे दिए हैं, क्या नगरवासी क्या ग्रामवासी इस धूल ने सबका जीना मुहाल कर दिया है । इससे सबसे ज्यादा यदि कोई त्रस्त है तो वो हैं व्यापारी और सड़क किनारे रहने वाले नगरवासी । यदि जल्दी ही इसका कोई समाधान नहीं निकाला गया तो ये धूल सीतापुरवासियों को बहुत सा सौगात मुफ्त में दे जायेगा । किसी को चश्मे के रूप में तो किसी को इन्हेलर के रूप में सौगात केवल देगा ही नही बल्कि बदले में कुछ छीन भी लेगा , किसी की आंखों की रौशनी तो किसी की ,,सें । क्या बच्चे क्या बुजुर्ग इसने सबका जीना हराम कर दिया है ।
मानता हूँ कि विकास से पहले कुछ विनाश होता है, जब- जब अमृत की खोज में समुद्र मंथन होगा, तो सबसे पहले विष की प्राप्ति होगी पर अब इस कलयुग में उस विष को पीने मेरे महादेव नही आने वाले उसे तो हमें ही पीना पड़ेगा । सम्भवतः भविष्य में सीतापुर नगर में चमचमाती सड़क बनेगी । पर उस सड़क को देखने के लिए स्वस्थ आंखों का होना भी जरूरी है, उस सड़क के आनंद को फील करने के लिए वर्तमान में हमारे फेफड़ों के बलिदान की आवश्यकता क्यों ?
यदि मैं ईमानदारी से कहूँ तो इस समस्या के लिए शासन प्रशासन की जितनी जिम्मेदारी है हम सब भी इसके लिए बराबर के जिम्मेदार हैं, हमारी चुप्पी के साथ साथ और भी कई कारण हैं ।
उम्मीद है इस समस्या का जल्द कोई उपाय निकले,,,,,,,,,,,
ईश्वर आपको धूल सहने की शक्ति दे,,,,
ये कोई राजनीतिक पोस्ट नही है , धूल से हर पार्टी के लोग परेशान है इसलिए इसमे राजनीति न करें : प्रशांत चतुर्वेदी