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पुलिस कस्टडी में उमेश की आखिरी सांस बलरामपुर की रात से उठे सवाल, सुबह ने दिया एक और दर्द

बरामदगी की छाया में गई एक जान, पुलिस की कहानी अधूरी… परिजनों के आंसू अनसुने। सीतापुर विधानसभा के नकना का रहने वाला था उमेश...

The Chalta बलरामपुर/सीतापुर चोरी के एक मामले की जांच अब एक परिवार के दर्द और जिला प्रशासन की जवाबदेही के बीच फंस गई है। उमेश सिंह, जो पुलिस कस्टडी में था, रात भर के सफर में जिंदगी से हार गया। उसकी मौत ने पूरे बलरामपुर को झकझोर दिया है। कई घरों में बेचैनी, कई मनों में गुस्सा, और पुलिस की कहानी में ऐसे खाली पन्ने जो सच को ढकते नजर आते हैं।

पुलिस का दावा है कि बरामदगी के लिए आरोपी को रात में बाहर ले जाया गया था। लौटते समय उमेश की अचानक तबीयत बिगड़ गई। पर सबसे बड़ा सवाल यही है कि अचानक कैसे? किन परिस्थितियों में? रास्ते में क्या हुआ? इन सवालों का कोई सीधा जवाब पुलिस के पास नहीं है।

सुबह करीब 4 बजे जब उमेश को जिला अस्पताल लाया गया, उसकी हालत खराब थी। डॉक्टरों ने कोशिश की, लेकिन वह बच नहीं पाया। अस्पताल के बाहर इस समय भारी पुलिस बल तैनात है, जैसे प्रशासन खुद भी समझ रहा हो कि यह मामला किसी भी वक्त भड़क सकता है।

पुलिस का कहना है कि उमेश सिकल सेल का मरीज था। पर अगर यह सच था, तो क्या उसकी सेहत के हिसाब से सफर जरूरी था? क्या मेडिकल फिटनेस ली गई थी? क्या कस्टडी में उसके स्वास्थ्य पर उतना ध्यान रखा गया, जितना एक नागरिक का हक होता है?

एक सप्ताह पहले बलरामपुर की ज्वेलरी दुकान में हुई चोरी के मामले में 9 लोग गिरफ्तार हुए थे। उमेश उन्हीं में से एक था। पूछताछ, दबाव और कस्टडी… अब यही तीन शब्द इस मौत के चारों ओर शक की धुंध बनकर खड़े हो गए हैं।

थाना प्रभारी कहता है कि परिजनों को सूचना दे दी गई है। लेकिन परिजनों का क्या कहना है? वे क्या मानते हैं? क्या उन्हें यह कहानी पूरी लगती है? ये सवाल अभी तक हवा में तैर रहे हैं। उमेश सीतापुर विधानसभा के नकना गांव का रहने वाला था। वहां भी इस मौत ने गांव के दिल में डर और गुस्सा दोनों भर दिए हैं।

कस्टडी में मौत सिर्फ एक घटना नहीं होती। यह उस भरोसे पर चोट है जो जनता कानून व्यवस्था पर करती है। उमेश की मौत क्या वाकई बीमारी की देन थी, या फिर सिस्टम के भीतर कोई ऐसा सच छिपा है जिसे अभी उजाला नहीं मिला?

फिलहाल इतना साफ है कि उमेश का जाना सिर्फ उसके परिवार का दुख नहीं, बल्कि पुलिस की जिम्मेदारी पर लिखा एक बड़ा सवाल है। जब तक जांच की परतें नहीं खुलतीं, यह मौत एक मेडिकल केस नहीं, बल्कि तंत्र के संवेदनहीन होने की गवाही बनकर खड़ी रहेगी।

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