“जिस विदेशी ने भारत को पहचाना, अब भारत को खुद को पहचानना है”
विदेशी विद्वान ने भारतीय वेदों और दर्शन को दुनिया में पहुँचाया, आज भारतीय युवाओं के लिए ज़रूरी है अपने ग्रंथों को समझना

🖋️ The chalta/कभी एक जर्मन विद्वान ने भारत की भाषा, संस्कृति और दर्शन को इतनी गहराई से समझा कि उसने पूरी दुनिया को बताया — भारत के वेद और उपनिषद मानव सभ्यता की सबसे प्राचीन और उच्चतम विचारधारा हैं।
उस विद्वान का नाम था फ्रेडरिक मैक्स मूलर।
मैक्स मूलर ने 19वीं सदी में संस्कृत सीखी, भारतीय धर्मशास्त्रों का अध्ययन किया और The Sacred Books of the East नामक श्रृंखला के माध्यम से भारत की आध्यात्मिकता और ज्ञान को अंग्रेज़ी में अनूदित कर विश्व तक पहुँचाया।
उन्होंने कहा था —
“यदि मुझे फिर जन्म मिले, तो मैं भारत में जन्म लेना चाहूँगा।”
उनकी यह भावना इस बात का प्रतीक है कि भारत की संस्कृति और भाषा ने एक विदेशी मन को भी प्रभावित किया।
आज के भारत के लिए सीख
आज वही भारत, जिसके ज्ञान को मैक्स मूलर ने दुनिया तक पहुँचाया, अपने ही ग्रंथों से दूर होता जा रहा है।
नई पीढ़ी संस्कृत को “पुरानी भाषा” मानती है, जबकि यही भाषा विज्ञान, दर्शन, गणित और आत्मबोध की जननी है।
शिक्षाविदों का मानना है कि जैसे मैक्स मूलर ने विदेशी होकर भारत की आत्मा को समझा, वैसे ही आज भारतीय युवाओं को अपने ग्रंथों को नई दृष्टि से पढ़ना और समझना चाहिए।
“संस्कृत सिर्फ भाषा नहीं, यह सोचने का तरीका है।
इसे सीखना अपने मूल से जुड़ने जैसा है।”
— प्रो. रमाकांत त्रिपाठी, विभागाध्यक्ष, संस्कृत विभाग, अंबिकापुर विश्वविद्यालय
विद्यार्थियों के लिए प्रेरणा
वेद, उपनिषद और गीता केवल धार्मिक ग्रंथ नहीं, बल्कि जीवन की दिशा देने वाले ज्ञान-स्रोत हैं।
इनमें पर्यावरण, मनोविज्ञान, गणित, समाज और आत्मज्ञान के सिद्धांत मिलते हैं — जो आज के आधुनिक भारत को भी राह दिखा सकते हैं।
यदि मैक्स मूलर ने भारत की विद्या को पश्चिम तक पहुँचाया,
तो आज का भारत उस विद्या को विश्व के भविष्य के रूप में पुनः प्रस्तुत कर सकता है।
खबर का संदेश:
“अपने ग्रंथों से दूर होकर भारत अधूरा है — उन्हें पढ़ना, समझना और अपनाना ही सच्ची प्रगति है।”



