जनमन आवास या जन-मन की लूट?
सरपंच, सचिव और प्रशासन की हड़बड़ी ने कोरवा जनजाति के दत्तक पुत्र को फिर धकेला कच्चे घर की ओर!

The chalta/सीतापुर अंबिकापुर (सरगुजा)
प्रधानमंत्री जनमन आवास योजना, जिसका उद्देश्य था हर गरीब को पक्का घर देना — अब कई जगह भ्रष्टाचार और लापरवाही का प्रतीक बनती जा रही है। सरगुजा जिले में कोरवा जनजाति के एक दत्तक पुत्र को इस योजना के तहत मिला मकान अधूरा छोड़ दिया गया है। दो लाख रुपये की लागत से बनने वाला यह आवास आज मिट्टी से “छबाया” जा रहा है।
अधूरा मकान, अधूरी उम्मीदें
जिस आवास में गरीब परिवार को सुरक्षा और सम्मान के साथ जीने की उम्मीद थी, वहां अब ईंटों के बीच से झांक रही है बेबसी। न दरवाजा है, न खिड़की, न प्लास्टर — बस अधूरी दीवारें और सरकारी काम का नाम।
सरपंच, सचिव और जनपद पंचायत के जिम्मेदारों की जल्दबाज़ी और लापरवाही ने इस अतिपिछड़ी जनजाति के परिवार को फिर उसी कच्चे घर में लौटने को मजबूर कर दिया, जहाँ से सरकार उसे बाहर निकालने की बात करती रही है।
“कागज़ों पर” बन रहे हैं घर
जनपद पंचायत की आवास शाखा में बैठे अधिकारी “कागज़ों पर” निर्माण पूरे कर रहे हैं। जबकि जमीनी हकीकत यह है कि हितग्राही खुद मिट्टी से छबाई में जुटा है। योजना के नियम के अनुसार — यदि लाभार्थी निर्माण करने में सक्षम नहीं है, तो पंचायत या जनपद को मकान बनाकर देना चाहिए, पर हां तो मकान बनाकर देने के बजाय अपने कमाईं का जरिया बना लिया है।

विकास की रफ्तार या अफसरशाही की चाल?
कोरवा जनजाति — जिसे सरकार ने ‘अतिपिछड़ा’ घोषित कर दत्तक लेकर मुख्यधारा से जोड़ने का प्रयास किया, आज भी बदहाली में है। योजनाएँ तो बहुत बनीं, पर ज़मीनी परिणाम कहीं नजर नहीं आते। अब जब सरकार मनरेगा और जनमन आवास योजना के तहत सहायता दे रही है, तब भी जिम्मेदारों ने इसे अपनी कमाई का जरिया बना लिया है।
जांच की जरूरत, कार्रवाई की मांग
यह पूरा मामला अब जांच का विषय बन गया है। ग्रामीणों की मांग है कि कलेक्टर सरगुजा और जिला पंचायत सीईओ स्वयं संज्ञान लें और दोषियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करें।
क्योंकि सवाल सिर्फ एक आवास का नहीं — बल्कि उस भरोसे का है जो गरीब ने सरकार पर जताया था।प्रधानमंत्री जनमन आवास योजना का उद्देश्य “हर गरीब को छत” देना था, लेकिन सरगुजा के इस मामले ने उस वादे की सच्चाई पर सवाल खड़ा कर दिया है।क्या जिम्मेदारों पर कार्रवाई होगी या यह मामला भी फाइलों में दब जाएगा — यही अब जनता की सबसे बड़ी जिज्ञासा है।