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जामकानी का पंचनामा – खाद की राजनीति और किसानों की बेबसी

सरकार और तंत्र को समझना होगा – किसानों को “खाद” चाहिए, “वादे” नहीं..ग्राम पंचायत ने बनाया पंचनामा और मांग रखी – “जब खाद चलकर गांव आ ही गया है, तो यहीं किसानों को उचित मूल्य पर क्यों न दिया जाए?”

द चलता:बरसात का मौसम… खेतों में फसल लग चुकें हो और एक बार खाद छिड़काव का समय हो… और किसानों की सबसे बड़ी जरूरत – यूरिया खाद। लेकिन जब समितियों में खाद का टोटा हो और व्यापारी के गोदाम में बोरी-बोरी खाद मिल जाए, तो सवाल सिर्फ एक ही उठता है – आखिर सरकार की व्यवस्था किसके लिए है? किसानों के लिए या व्यापारियों के लिए?

जामकानी ग्राम पंचायत से वायरल हुआ पत्र यही हकीकत उजागर करता है। बुधवार रात व्यापारी ने करीब 200 बोरी खाद अपने मित्र के पुराने मकान में रख दी। सुबह जैसे ही किसानों को खबर लगी, मानो “कुआं खुद प्यासे के पास चलकर आ गया।” किसानों ने तुरंत पंचनामा बनाकर मांग रख दी – जब खाद यहां तक आ ही गया है तो इसे जामकानी के किसानों को ही उचित मूल्य पर क्यों न बांटा जाए?

कहावत है “ऊंट के मुंह में जीरा” – दो सौ बोरी खाद भले ही पूरे इलाके के लिए पर्याप्त न हो, लेकिन यह किसानों की पीड़ा को उजागर करने के लिए काफी है।

अब असली सवाल – समितियों में खाद नहीं, लेकिन व्यापारियों के पास खाद क्यों? किसानों को लाइन में खड़ा होना पड़ता है, जबकि व्यापारी आराम से बोरी का बोरा जमा कर लेता है। सरकार हर साल कहती है कि खाद पर्याप्त है, लेकिन हर बरसात में यही किल्लत क्यों दोहराई जाती है?

जामकानी का यह पंचनामा सोशल मीडिया में वायरल हो गया है। प्रशासन चाहे तो इसे किसानों के दर्द की दस्तक माने, वरना यह दस्तक जल्द ही गुस्से की आवाज में बदल सकती है। खेती का मौसम इंतजार नहीं करता, और भूखे पेट किसानों के भरोसे खेतों में अन्न नहीं उगता।

सरकार और तंत्र को समझना होगा – किसानों को “खाद” चाहिए, “वादे” नहीं।

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